बेशक़ ! यह लगता अजीब है ॥
वह करता है अपने मन की ।
कुछ कहते हैं उसको सनकी ,
कुछ उसको धुर सिड़ी पुकारें –
वह मेरे दिल के क़रीब है ॥
नज़्म रईसाना सब उसकी ।
ग़ज़ल अमीराना सब उसकी ।
वह अदीब लिखता दौलत पर –
मगर निहायत ही ग़रीब है ॥
सारे ही हथियार पकड़ता ।
जान हथेली पर ले लड़ता ।
लेकिन जीत कभी ना पाता –
दुश्मन जो उसका नसीब है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
4 comments:
सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (21-02-2015) को "ब्लागर होने का प्रमाणपत्र" (चर्चा अंक-1896) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद ! मयंक जी !
बहुत बढ़िया....दुश्मन उसका नसीब है
धन्यवाद ! रश्मि शर्मा जी !
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