किन्तु मेरे लिए
न जाने क्यों ?
किन्तु एक व्यसन है – कविता ।
लिख लेने के बाद
मुझे असीम शांति मिलती है ।
इसका दूसरा कोई पाठक नहीं होता ।
मैं स्वयं पढ-पढ़कर आत्ममुदित होता हूँ ।
और हाँ –
जो यह कहते हैं
यह फ़ालतू लोगों का
एक फ़ालतू काम है
उन्हे सूचित हो –
मेरी तो यह टाइम-पास की कमाई है ।
कैसे ?
मैं बिना नींद की गोली खाये
मात्र एक कविता लिखकर
घोड़े बेचकर सो जाता हूँ ।
इसी तरह तैयार हो रहा है –
नशे-नशे में ,
मजे-मजे में ,
मेरे काव्य-संग्रह का माल ।
और एक दिन
छपेंगे एक के बाद एक
संग्रह पे संग्रह मेरे
जिन्हे बाटूँगा सबको
चाय नाश्ते के साथ
बिलकुल मुफ़्त में ।
पढ़ने के लिए नहीं ,
वैसे भी पढ़ता कौन है ?
घर ले जाकर सब पटक ही तो देते हैं
एक कोने में ।
निमंत्रण पत्रों की तरह -
पढ़लें तो पढ़ भी लें ।
एक बात तय है
मैं कवि तो हूँ ही –
किन्तु मुझे कवि कहलाना भी है
अतः प्रकाशन-विमोचन के पश्चात
संग्रहों की मोटाई और संख्या के हिसाब से
मैं छोटे या बड़े कवि की संज्ञा पा ही लूँगा ।
यही तो मेरे काव्य-कर्म का मूल उद्देश्य है ।
मैं कोई फ़ालतू काम नहीं करता ।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
2 comments:
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
धन्यवाद ! राजेन्द्र कुमार जी !
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