Friday, January 30, 2015

मुक्तक : 665 - मेरी इक तरफ़ा आश्नाई


जिसने दुनिया मेरी बनाई थी ॥
ज़िंदगानी मेरी सजाई थी ॥
मेरी मेहनत न वो मेरी क़िस्मत ,
मेरी इक तरफ़ा आश्नाई थी ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...