Wednesday, January 7, 2015

मुक्तक : 657 - सिर बलाएँ अपने अनगिन


सिर बलाएँ अपने अनगिन ढोएगा सच ॥
जो भी कुछ पाया है गिन-गिन खोएगा सच ॥
मन को मेरे जो दुखा सुख पा रहा वो ,
शीघ्र पछताएगा निसदिन रोएगा सच ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...