क्या
इसलिए कि आस्माँ से औंधा गिरा हूँ ?
सब जिस्म
पुर्जा-पुर्जा मगर टुक न मरा हूँ !
अपने
ही आस-पास हैं मेरे तो वलेकिन ,
क्यों
लग रहा है दुश्मनों के बीच घिरा हूँ ?
-डॉ.
हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
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