Monday, January 19, 2015

मुक्तक : 662 - क्या इसलिए कि आस्माँ


क्या इसलिए कि आस्माँ से औंधा गिरा हूँ ?
सब जिस्म पुर्जा-पुर्जा मगर टुक न मरा हूँ !
अपने ही आस-पास हैं मेरे तो वलेकिन ,
क्यों लग रहा है दुश्मनों के बीच घिरा हूँ ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...