Sunday, January 4, 2015

157 : ग़ज़ल - मुझसे फिर अपना दिल लगा दे आ ॥


मुझसे फिर अपना दिल लगा दे आ ॥
मिट रही ज़िंदगी बना दे आ ॥
गिर रहा हूँ मैं तेरी नफ़्रत से ,
कर मोहब्बत मुझे उठा दे आ ॥
तुझको मिलती है गर ख़ुशी इसमें ,
मुझको तड़पा मुझे सज़ा दे आ ॥
बेवफ़ा है बुरा है तो ज़ालिम ,
क़त्ल करके मेरा बता दे आ ॥
है अगर बेक़सूर तू तो फिर ,
कोई पक्का सुबूत ला दे आ ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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