Saturday, January 10, 2015

158: ग़ज़ल - मशहूर को जहाँँ से गुमनाम


मशहूर को जहाँँ से , गुमनाम बना डाला ।।
होते ही सुब्ह फ़ौरन , क्यों शाम बना डाला ।।1।।
मैकश हुआ ही तेरी , सुह्बत का असर पूरा ,
इक मै-अदू को भी मै-आशाम बना डाला ।।2।।
लतियाता तू न होता , तो बस मैं चना रहता ,
ठोकर ने तेरी काजू-बादाम बना डाला ।।3।।
पूनम की चाँदनी था बरगद का था साया मैं ,
तूने भरी दुपहरी , का घाम बना डाला ।।4।।
हालात ने वो करवट बदली कि सियावर को ,
श्रीराम से बदल राधेश्याम बना डाला ।।5।।
( मैकश=शराबी ,मै-अदू=मदिरा-शत्रु ,मै-आशाम=मदिरा-प्रेमी ,घाम=धूप )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (12-01-2015) को "कुछ पल अपने" (चर्चा-1856) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! मयंक जी !

कविता रावत said...

समय समय की बात ..जाने कौन कब मशहूर हो और कब गुमनाम ...बढ़िया प्रस्तुति .

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Kavita Rawat जी !

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