Monday, January 26, 2015

अकविता (14) - सतत अनुसंधान ,शोध ,खोज ,तलाश


अभी तो हम चेतन हैं ।
यदि पहले से ही हमें पता हो
हमारी मौत का दिन ।
हमें पता हो कब होने वाला है
हमारा अपमान ?
हम जिस परीक्षा में बैठने वाले हैं
उसमें क्या पूछा जाने वाला है ?
क्या चल रहा है दूसरों के मन में ?
वह सब जान सकें चुटकी बजाते ही
जो जो भी हम जानना चाहें ।
प्रश्न यह है कि –
यदि यह सब संभव हो जाए तो क्या होगा ?
यदि हम सब यह मान बैठें या
सचमुच ही यही सच होता भी हो कि -
जब जब जो जो होता है
तब तब वो वो ही होता ही है ।
तो फिर हमें  क्यों रह जाएगी
कुछ भी करने की आवश्यकता ?
हमें करना भी चाहिए क्यों कुछ ?
हमारे जीवन का क्या उद्देश्य होगा
यदि सब कुछ पूर्व निर्धारित है तो ?
क्या अज्ञात के प्रति जिज्ञासा ही
जीवन का आनंद नहीं है ?
संघर्ष ही गति का कारण नहीं है क्या ?
लगता है
हमें निरंतर चलायमान बनाए रखने का
अनिवार्य कारण है -
सतत अनुसंधान , शोध , खोज , तलाश ।  
अन्यथा क्या हम जड़ न हो जाएंगे ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (27-01-2015) को "जिंदगी के धूप में या छाँह में" चर्चा मंच 1871 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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गणतन्त्रदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Himkar Shyam said...

सुंदर भावाभिव्यक्ति...मंगलकामनाएँ !!

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! हिमकर श्याम जी !

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