Sunday, November 1, 2015

मुक्तक : 777 - लरजती है पूरी फ़ौज ॥



 खा-खा के ज़ख्म पगला मनाता फिरे है मौज ॥
सिर्फ़ उस अकेले से ही लरजती है पूरी फ़ौज ॥
आँखों से उसकी एक टपकती कभी न बूँद ,
रोये तो आँसुओं से लबालब वो भर दे हौज ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...