Wednesday, November 25, 2015

गीत : 40 - अलाव नहीं है ॥




चाहे धरा पे चाहे चाँद पे या अधर पर ॥
जो चाहते हैं वह न लाके दोगे तुम अगर ॥
तुम लाख कहो तुमको हमसे प्यार है मगर ,
हम समझेंगे हमसे तुम्हें लगाव नहीं है ॥
सिंगारहीन हमको देखकर अगर तुम्हें –
ऐसा लगे न सामने है कोई अप्सरा ।
सजधज के आएँ तो लगे न दिल की धड़कनें –
थम सी गई हैं या तुरंत बढ़ गईं ज़रा ।
हम मान लेंगे हममें सुंदराई तो है पर ,
टुक चुम्बकत्व या तनिक खिंचाव नहीं है ॥
छू भर दें हम अगर तुम्हें तो तुमको न लगे –
बहने लगी नसों में ख़ून की जगह पे आग ।
धर दें अधर अधर पे फिर भी तुममें रंच भी –
जो सुप्त है कि मृत है वो जाए न काम जाग ।
समझेंगे अपना व्यर्थ है यौवन ये सरासर ,
ठंडा है दहकता हुआ अलाव नहीं है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

4 comments:

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-11-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2172 में दिया जाएगा
धन्यवाद

Asha Joglekar said...

सुंदर।

Rishabh Shukla said...

​​​​​​​​​सुन्दर रचना ..........बधाई |
​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​आप सभी का स्वागत है मेरे इस #ब्लॉग #हिन्दी #कविता #मंच के नये #पोस्ट #असहिष्णुता पर​ ​| ब्लॉग पर आये और अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें |

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कविता रावत said...

बहुत खूब!

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...