Wednesday, November 11, 2015

गीत : दीपावली ॥

पैर धरती पे देखो रखे बिन चली ॥
दुनिया सारी मनाने को दीपावली ॥
कानफोड़ू पटाखों की चहूँदिस धमक ।
जलती बारूद की सूर्य जैसी चमक ।
बूढ़े , शिशु और बीमार इस शोर से ,
जब दहलते हैं भीतर से उठते बमक ।
पूछते हैं धमाकों का औचित्य वो –
जो मचा देता है शांति में खलबली ?
पैर धरती पे देखो रखे बिन चली ॥
दुनिया सारी मनाने को दीपावली ॥
तेल खाने नहीं पर जलाने बहुत ।
ज़ीरो पढ़ने नहीं जगमगाने बहुत ।
सौ के बदले जलाओ दिया एक ही ,
बल्ब इक रोशनी में नहाने बहुत ।
सोचना फिर तुम्हीं तेल कितना बचा ?
एक ही रात में कितनी बिजली जली ?
पैर धरती पे देखो रखे बिन चली ॥
दुनिया सारी मनाने को दीपावली ॥
( ज़ीरो = ज़ीरो बल्ब , बमक = चौंक पड़ना , सहम जाना )

-डॉ. हीरालाल प्रजापति

2 comments:

Rajendra kumar said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये।

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा 12-11-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2158 पर की जाएगी |
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
धन्यवाद

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