Saturday, November 21, 2015

मुक्तक : 782 - चने नहीं चबाना है ॥




लाल मिर्ची औ बस चने नहीं चबाना है ॥
सोने – चाँदी के पेट भरके कौर खाना है ॥
आज रहता हूँ झोपड़ी में मैंं मगर ब ख़ुदा ,
मुझको अपने लिए कल इक महल बनाना है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति




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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...