Wednesday, November 4, 2015

मुक्तक : 778 - निगाहें रखना ॥





खोल के अपनी बंद - बंद ये बाहें रखना ॥
मरते दम तक मेरी रहों पे निगाहें रखना ॥
अबकी जो मैं गया न लौट के फिर आऊँगा ,
फिर ज़माने तू मेरी कितनी भी चाहें रखना ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति




2 comments:

Sarik Khan Filmcritic said...

Welcome Sir Hiralal Ji, Plz come.
गाडरवारा- साहित्य सृजन परिषद के तत्वाधान में सार्वजनिक पुस्तकालय के तिलक भवन में 7 नवम्बर, शनिवार को रात्रि 8:30 बजे काव्य गोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है । जिसमें साहित्यकार एवं साहित्यप्रेमी सादर आमंत्रित हैं । उक्ताशय की जानकारी साहित्य सृजन परिषद के अध्यक्ष रोहित रमन ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से प्रेषित की ।

sukhmangal said...

वाह! हीरालाल प्रजापति जी लगता है आप
पहली बार निर्णय की मुद्रा में हुए हैं |आप
के इस आग्रह पूर्ण रचना के हेतु धन्यवाद !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...