Saturday, November 14, 2015

मुक्तक : 780 - मुँह में रसगुल्ला



घी तला पापड़ भी मोटी गोल लिट्टी सा लगे ॥
मुँह में रसगुल्ला रखूँ तो सख़्त गिट्टी सा लगे ॥
उसको ले आओ मुझे फिर ख़ाक ज़र हो जाएगी ,
वरना उसके बिन मुझे सोना भी मिट्टी सा लगे ॥
( लिट्टी = एक तरह की बाटी जैसी मोटी रोटी , गिट्टी = पत्थर का टुकड़ा , ख़ाक = मिट्टी , ज़र = सोना )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...