ज़रा सी बाढ़ को तुम यों ही ज़लज़ला न कहो ॥
दिये की लौ है इसे सूर्य-चंद्रमा
न कहो ॥
जो जी में आए ख़ुशामद में याद करके कहें ,
मगर हाँ भूल के नाली को नर्मदा न कहो ॥
न पहुँचे लाख वो मंज़िल पे पर चला जो चले ,
उसे कभी भी पड़ा , ठहरा या खड़ा न कहो
॥
अभी वो शेर का शावक है दंतहीन मगर
,
गले लगा के उसे गाय का बछड़ा न कहो
॥
ये माना कब से वो खटिया पे शव के जैसा पड़ा ,
कि साँस चलती है जब तक उसे मरा न
कहो ॥
ज़माना जिसको कि इक सुर में कह रहा हो
भला ,
भले बुरा हो वो पर उसको तुम बुरा न
कहो ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
1 comment:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 10 नवम्बबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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