Monday, November 9, 2015

168 : ग़ज़ल : गाय का बछड़ा न कहो ॥



ज़रा सी बाढ़ को तुम यों ही ज़लज़ला न कहो ॥
दिये की लौ है इसे सूर्य-चंद्रमा न कहो ॥
जो जी में आए ख़ुशामद में याद करके कहें ,
मगर हाँ भूल के नाली को नर्मदा न कहो ॥
न पहुँचे लाख वो मंज़िल पे पर चला जो चले ,
उसे कभी भी पड़ा , ठहरा या खड़ा न कहो ॥
अभी वो शेर का शावक है दंतहीन मगर ,
गले लगा के उसे गाय का बछड़ा न कहो ॥
ये माना कब से वो खटिया पे शव के जैसा पड़ा ,
कि साँस चलती है जब तक उसे मरा न कहो ॥
ज़माना जिसको कि इक सुर में कह रहा हो भला ,
भले बुरा हो वो पर उसको तुम बुरा न कहो ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

1 comment:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 10 नवम्बबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...