Sunday, November 8, 2015

मुक्तक : 779 - मोहब्बत का मज़ा ?



होगी उसकी अजब ही ढंग से देने की रज़ा ॥
उसको इक सख़्त-खौफ़नाक मगर ख़ुफ़्या-सज़ा ॥
वर्ना क़ाबिल जो सिर्फ़ो सिर्फ़ कराहत के उन्हें ,
क्यों सरेआम बख़्शता वो मोहब्बत का मज़ा ?
( रज़ा=इच्छा ,ख़ुफ़्या=रहस्यमय ,कराहत=घृणा )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...