Thursday, October 29, 2015

मुक्तक : 776 - दलदल में धँस रहा ॥



वो जानबूझ कर ही तो दलदल में धँस रहा ॥
मर्ज़ी से अपनी काँटों के जंगल में फँस रहा ॥
इस धँसने और फँसने से होगा ज़रूर उसे ,
कुछ फ़ायदा ही दर्द में वो तब तो हँस रहा ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...