Monday, October 19, 2015

मुक्तक : 771 - लबालब ग़ुरूर था ॥



सच था कि झूठ इसपे ग़ुमाँ तो ज़ुरूर था ॥
मेरा है तू ये मुझमें लबालब ग़ुरूर था ॥
आँखें खुलीं तो औंध गिरा आस्मान से,
ख़ाली हुआ जो मुझमें छलकता सुरूर था ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...