Friday, October 16, 2015

मुक्तक : 770 - चमचम अमीराना ॥




दरो-दीवार चाँदी की हों ,छत सोने मढ़ी माना ॥
भले रिसता हो कोने-कोने से चमचम अमीराना ॥
जहाँ के सुन लतीफ़े , मस्ख़रे तक कर भी बाशिंदे -
नहीं हँसते , उसे मैं घर नहीं ; बोलूँ अज़ाख़ाना ॥
( अमीराना=धनाढ्यता ,लतीफ़े=चुट्कुले ,मसख़रे=विदूषक ,तक=देख ,बाशिंदे=निवासी ,अज़ाख़ाना=शोक गृह )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...