Friday, October 23, 2015

मुक्तक : 774 - राह के क़ालीन



आशिक़ो-महबूब भी फटके न फिर उसके क़रीब ॥
हो गया जब शाह से वह माँगता-फिरता ग़रीब ॥
जो हुआ करते थे उसकी राह के क़ालीन सब ,
वक़्ते-आख़िर पास में उसके न दिक्खे वो हबीब ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...