सब कुछ वो मुझसे छीन-
झपट आज ले गया ॥
हिलमिल के रहते थे
जो मेरे संग प्यार से ।
पाले थे मैंने जितने भी
विहंग प्यार से ।
पिक,काक,शुक,कपोत
और बाज ले गया ॥
दो-चार-पाँच-छः या
कदाचित् वो सात थे ।
पर जो भी मेरे पास में
जवाहिरात थे ।
जैसे कि हीरा,नीलम,
पुखराज ले गया ॥
कपड़े जो तन पे थे बस
उनको छोड़ के सभी ।
चद्दर , अँगोछा भी गया
ले मोड़ के सभी ।
जूते भी और टोप
माने ताज ले गया ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
5 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (24-03-2015) को "जिनके विचारों की खुशबू आज भी है" (चर्चा - 1927) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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शहीदों को नमन करते हुए-
नवसम्वत्सर और चैत्र नवरात्रों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद ! मयंक जी !
बढ़िया
धन्यवाद ! savan kumar जी !
धन्यवाद ! सु-मन जी !
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