देख कहाँ पर आया तू ?
ओले ठण्ड के संवाहक ।
आग सदा ही हो दाहक ।
मैंने तो न कहीं देखी –
शीतल अग्नि बरफ धू-धू ॥
देख कहाँ पर आया तू ?
ब्रह्मचर्य धारे नामी ।
सत्य-अहिंसा अनुगामी ।
गुपचुप यौनाचार में लिप्त –
खाते माँस गटकते लहू ॥
देख कहाँ पर आया तू ?
शोक-सभा में तू बतला ।
ऐसा भी होता है भला ?
संस्मरण-रोदन पश्चात –
हा-हा ,ही-ही ,हू-हू-हू
॥
देख कहाँ पर आया तू ?
मुझको भी
दिखला वे घर ।
यदि सच है
तो अभी चलकर ।
जिनमें हिल-मिल
रहती हों –
माँ-बेटी
सी सास-बहू ॥
देख कहाँ पर आया तू ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
2 comments:
बहुत सुन्दर...
धन्यवाद 🙏
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