Saturday, December 13, 2014

मुक्तक : 653 - पड़ा रहता है


पड़ा रहता है दलदल में न डूबे ना धँसा करता ॥
वो मकड़ी की तरह जालों में रहकर ना फँसा करता ॥
लतीफ़ागोई करके भी मेरी आँखें भर आती हैं ,
वो अपनी दास्ताने ग़म सुनाकर भी हँसा करता ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...