ऐसी मैं कविता लिखता हूँ ॥
रोष में
पर्वत को तिल कहता ,
हो सुरंग
तो मैं बिल कहता ,
होता
हूँ जब हर्षमग्न तो –
बूँद
को भी सरिता लिखता हूँ ॥
कुछ मस्तिष्क को बूझ न पड़ता ,
बिन ऐनक जब सूझ न पड़ता ,
हृष्ट-पुष्ट सम्पूर्ण पुरुष को –
क्षीणकाय वनिता लिखता हूँ ॥
मित्र मंडली में जब फँसता ,
सुध-बुध भूल-भाल तब हँसता ,
कृष्ण धनी को रंक सुदामा –
राधा को ललिता लिखता हूँ ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
No comments:
Post a Comment