बदन को फूँकता ठंडा यों ही बुख़ार
करूँ ॥
चढ़े दिमाग़ के गुस्से का यों उतार
करूँ ॥
क़लम ले दिल की ज़िंदगी की डायरी
में बयाँ ,
मैं अपनी शायरी में अपना हर गुबार
करूँ ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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