Sunday, December 28, 2014

मुक्तक : 654 - दुर्गंधयुक्त स्वेद


दुर्गंधयुक्त स्वेद भी गुलाब इत्र था ॥
सच थूक भी उसे मेरा कभी पवित्र था ॥
दिखती थी रश्मिपुंज मेरी कालिमा उसे ,
जब वो कभी मेरा अभिन्न इष्ट मित्र था ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...