उस कोमल में अति दृढ़ता है ॥
जीवन के प्रति इक उत्कटता ।
है उसमें अद्भुत जीवटता ।
नीलगगन के स्वप्न लिए वो -
बिन सीढ़ी ऊपर चढ़ता है ॥
उसका हाथ न कोई पकड़ता ।
स्वयं ही गिर फिर उठ चल पड़ता ।
उसका लक्ष्य थकाने वाला –
अतः वो रुक-रुक कर बढ़ता है ॥
अर्थहीन संवाद न करता ।
व्यर्थ वाद-प्रतिवाद न करता ।
अपनी गलती झुक स्वीकारे –
दोष न औरों पर मढ़ता है ॥
धरती पर ही स्वर्ग-नर्क हैं ।
उसपे इसके ढेर तर्क हैं ।
सारे नर्क मिटाकर अपने –
उन पर स्वर्ग नये गढ़ता है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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