मेरी इस बात पे तब तब बड़ी तक़रार हो उठती ।।
नहीं इक दो दफ़ा ही बल्कि कई कई बार हो उठती ।।
नहीं हूँ मसख़रा फिर भी मुझे जब देखकर महफ़िल ,
न संजीदा हो उल्टे और ठहाकाज़ार हो उठती ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
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