उनको मैं असफल लगता हूँ ॥
गमले से जो खेत हुआ मैं ।
उनके ही तो हेत हुआ मैं ।
हूँ संवेदनशील औ’ भावुक –
पर उनको इक कल लगता हूँ ॥
जो बोले वो मैं कर बैठा ।
मरु में मीठा जल भर बैठा ।
व्योम निरंतर चूमूँ फिर भी –
उनको पृथ्वी तल लगता हूँ ॥
उनकी ही ले सीख हुआ हूँ ।
इमली से यदि ईख हुआ हूँ ।
मदिरा से कहीं अधिक मदिर पर –
उनको सादा जल लगता हूँ ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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