खाता हूँ बस घास-फूस मैं ॥
पहले खाने से
डरता था ।
बेमन से कम-कम
चरता था ।
पेट भरूँ अब ठूस-ठूस मैं ॥
कम पीता था
जब ज्यादा था ।
कारण वह पानी
सादा था ।
मिनरल पीता चूस-चूस मैं ॥
जब वह मेरे
पीछे लागे ।
मैं आगे वह
पीछे भागे ।
वह इक बिल्ली और मूस मैं ॥
उसके जैसा
मेरा भी झट ।
काम निपट जाता ,
जो फटाफट
दे देता उत्कोच-घूस मैं ॥
-डॉ. हीरालाल
प्रजापति
4 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (06-12-2014) को "पता है ६ दिसंबर..." (चर्चा-1819) पर भी होगी।
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सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद ! मयंक जी !
sunder....
धन्यवाद ! Shanti Garg Garg जी !
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