Tuesday, December 1, 2015

मुक्तक : 784 - नींद भर का ख़्वाब



एक ही जाम में सौ ख़ुम भरी शराब दिखे ॥
एक जुगनूँ में ही दोपहरी आफ़्ताब दिखे ॥
एक मुद्दत से न सोया सो चाहता हूँ मुझे ,
एक ही झपकी में सौ नींद भर का ख़्वाब दिखे ॥
( जाम=प्याला , ख़ुम=मटका, आफ़्ताब=सूर्य , मुद्दत=अर्सा )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...