Friday, December 18, 2015

मुक्तक : 792 - न कह उसको तू ‘तू’ ॥




वो इक शेर है कोई हरगिज़ न आहू ॥
उसे आप ही कह न कह उसको तू , तू
कभी मेरे क़िस्सों का किरदार था वो ,
मेरी शायरी का रहा है वो मौजू ॥
( आहू=हिरण , किरदार=चरित्र ,शायरी=कविता ,मौजू=विषय )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...