Tuesday, December 8, 2015

मुक्तक : 788 - आँख लड़ी !!





फ़िदा उसी पे ही दिल होने अड़ा , जान अड़ी !!
बचानी जिससे थी उससे ही तो जा आँख लड़ी !!
हसीं के साथ ही मासूम भी इतना था अदू ,
बजाय सख़्त कराहत के मुहब्बत उमड़ी !!
( अदू = शत्रु ,कराहत = घृणा )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति



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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...