आकर्षण तुझ सम चुम्बक में भी न कहीं होगा ॥
तुझ सम्मुख सुंदरतम भी आसीन
नहीं होगा ॥
आँखों को भाने वाले इतने तो हैं रँग तुझमें ,
इन्द्रधनुष तुझसे बढ़कर रंगीन
नहीं होगा ॥
मीठेपन में तू मधु से मीठी
ही तो निकलेगी ,
सागर भी तुझसे ज्यादा नमकीन नहीं होगा ॥
सीधी-सादी यौवन-गति सर्पों
सी ही झूम उठे ,
तेरे सुर के आगे कोई बीन
नहीं होगा ॥
तेरे दर्शन पा सुध-बुध भूल
अपनी है कौन युवा ,
तेरी प्रीति में अष्ट-प्रहर
लवलीन नहीं होगा ?
तेरा निर्धन स्वामी भी मैं धनपति ही समझूँ ,
तुझसे जो वंचित उससे कोई
दीन नहीं होगा ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
1 comment:
बेहद प्रभावशाली रचना......बहुत बहुत बधाई.....
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