Sunday, December 20, 2015

ग़ज़ल : 173 - रंगीन नहीं होगा ॥



आकर्षण तुझ सम चुम्बक में भी न कहीं होगा ॥
तुझ सम्मुख सुंदरतम भी आसीन नहीं होगा ॥
आँखों को भाने वाले इतने तो हैं रँग तुझमें ,
इन्द्रधनुष तुझसे बढ़कर रंगीन नहीं होगा ॥
मीठेपन में तू मधु से मीठी ही तो निकलेगी ,
सागर भी तुझसे ज्यादा नमकीन नहीं होगा ॥
सीधी-सादी यौवन-गति सर्पों सी ही झूम उठे ,
तेरे सुर के आगे कोई बीन नहीं होगा ॥
तेरे दर्शन पा सुध-बुध भूल अपनी है कौन युवा ,
तेरी प्रीति में अष्ट-प्रहर लवलीन नहीं होगा ?
तेरा निर्धन स्वामी भी मैं धनपति ही समझूँ ,
तुझसे जो वंचित उससे कोई दीन नहीं होगा ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

1 comment:

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बेहद प्रभावशाली रचना......बहुत बहुत बधाई.....

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...