Sunday, December 13, 2015

मुक्तक : 789 - दुश्मन दो मुझको



दुश्मन दो मुझको जानी या जानी फिर बलम दो ॥
जज़्बात को दिखाने खुशियाँ या कुछ अलम दो ॥
पानी पे कैसे मुमकिन कुछ भी उकेरना हो ?
इक मुझको कोरा काग़ज़ ,अच्छी सी इक क़लम दो ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...