अपने इन हालात के ख़ुद
ही तो हम जिम्मेदार नहीं ?
शांति शांति क्योंकर चिल्लाएँ
? क्या हम पे हथियार नहीं ?
समझ के दुश्मन फुफकारों
को गीदड़ भभकी वार करे ,
क्या विषदंत का मालिक
फिर भी डसने का हक़दार नहीं ?
नहीं बन रहा गिद्ध कबूतर
बहुत कोशिशें कर देखीं ,
क्यों कपोत भी गरुड़-बाज
बनने को फिर तैयार नहीं ?
अब जवाब ईंटों का हमको
पत्थर से देना होगा ,
वरना दुश्मन समझेगा हम
ताक़तवर दमदार नहीं ॥
वक़्त न लातों के भूतों
पर बातों में बर्बाद करो ,
समझ न पाएगा अहमक़ जब तक
देंगे फटकार नहीं ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
2 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (28-10-2013)
संतान के लिए गुज़ारिश : चर्चामंच 1412 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक धन्यवाद ! रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी !
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