Sunday, October 6, 2013

मुक्तक : 355 - वो बर्फ़ ओढ़े अंदर


वो बर्फ़ ओढ़े अंदर होली सा जल रहा है ॥
ऊपर है ठहरा-ठहरा नीचे वो चल रहा है ॥
हस्ती में उसकी क़ामिल जद्दोजहद है फिर भी ,
हालात के मुताबिक़ पानी सा ढल रहा है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...