Sunday, October 13, 2013

मुक्तक : 356 ( B ) - इष्ट मित्र ?



पंक में खिलते कँवल को मानते हो अति पवित्र ॥
जंगली पुष्पों में भी तुम सूँघते फिरते हो इत्र ॥
किन्तु जिसने झोपड़ी में यदि लिया होता है जन्म ,
हिचकिचाते क्यों बनाने में उसे तुम इष्ट मित्र ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

2 comments:

Ghanshyam kumar said...

बहुत सुन्दर...

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Ghanshyam kumar जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...