Saturday, October 5, 2013

देवी गीत (1) तीनों ताप से जलती दुनिया




॥ तुम निर्मल मल ग्रसित जगत मन ,पावन कर दो मैया ॥
॥ हर  लो  सब  मन  की  विकृतियाँ , जीवन भर को मैया ॥

तीनों तापों से जलती दुनिया मैया आग बुझाओ ॥
औंधे मुँह सब लोग पड़े हैं आके आप उठाओ ॥1॥
तीनों तापों से जलती दुनिया....................
काम क्रोध मद लोभ मोह मत्सर में सभी फिरते हैं ।
स्वार्थ मगन दुनिया वाले मतलब को उठे गिरते हैं ।
विषय वासनाओं के दल दल से मन प्राण बचाओ ॥2॥
तीनों तापों से जलती दुनिया........................
यह संसार असत या सत है मन में सभी ये भ्रम है ।
द्वैत अद्वैत की खींचातानी व्यर्थ सभी ये श्रम है ।
मूरख हैं सब आकर इनको तत्व ज्ञान समझाओ ॥3॥
तीनों तापों से जलती दुनिया...........................
मन से वचन से तेरी जहाँ में भक्ति कहाँ सब करते ?
दुष्ट अनिष्ट की आशंका वश ढोंग यहाँ सब करते ।
हेतु रहित अनुराग आप पद सबका आज लगाओ ॥4॥
तीनों तापों से जलती दुनिया............................
राम कहाँ रावण को जीत सकते थे शक्ति बिन तेरी ?
और कहाँ मिल सकती थी वह शक्ति भक्ति बिन तेरी ?
अपनी शक्ति का फिर से जग को चमत्कार दिखलाओ ॥5॥
तीनों तापों से जलती दुनिया............................
कलियुग में तेरा नाम काम तरु मनवांछित फल दाता ।
दुःख दुकाल दारिद्र्य दोष सब तेरी दया से जाता ।
इस संसार की सब विपदाएँ मैया शीघ्र हटाओ ॥6॥
तीनों तापों से जलती दुनिया............................
औंधे मुँह सब लोग पड़े हैं................................

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

3 comments:

Darshan jangra said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार - 06/10/2013 को
वोट / पात्रता - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः30 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra


डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Darshan jangra जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...