मैं नहीं कह सकता.................
मुझे मान्य है ।
सर्वथा मान्य है ।
आप जो कहते रहते हो
प्रायः -
मात्र बेटों के पिता
होने के बावजूद
बेटियों के बारे में
।
कि बेटियाँ ‘ये’
होती हैं ,
बेटियाँ ‘वो’
होती हैं ।
( ‘ये’
और ‘वो’
से यहाँ तात्पर्य
उनकी अच्छाइयाँ मात्र
से है )
निरे अपवाद छोड़कर यही
सच भी है
किन्तु
जिसे आप डंका बजा-बजा
कर कह सकते हो
मैं वह सब नहीं कह
सकता !
हरगिज़ नहीं कह सकता
!
जबकि आपकी कविताओं
में चित्रित ,
कहानियों ,
उपन्यासों में वर्णित
महान बेटियों से कहीं
बढ़कर ही
मैंने सदैव उन्हे
पाया है ।
क्योंकि ,
यदि जो आप कहते हैं
वही मैं भी बोलने लगूँ
तो
इसे पक्षपात ही समझा
जाएगा ।
मात्र बेटियों का बाप
जो हूँ ।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
3 comments:
धन्यवाद ! Sriram Roy जी !
वाकई सुन्दर भाव !!
धन्यवाद ! Lekhika 'Pari M Shlok'जी !
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