Saturday, October 26, 2013

मुक्तक : 357 - ख़ुशहाल दिल को जब्रन



ख़ुशहाल दिल को जब्रन नाशाद करके रोऊँ ॥
आबाद ज़िंदगानी बर्बाद करके रोऊँ ॥
क्या हो गया है मुझको उस सख़्त-बेवफ़ा को ,
मैं क़ब्र में पहुँचकर भी याद करके रोऊँ ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...