Sunday, October 27, 2013

मुक्तक : 358 - तमाम जद्दोजहद


क़ाफ़ी जद्दोजहद के मुश्किलों के बाद मिला ।।
तीखी कड़वाहटों के बाद मीठा स्वाद मिला ।।
अपनी तक़्दीर कि लाज़िम जो जब भी हमको रहा ,
उससे कम ही हमेशा पाया कब ज़ियाद मिला ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

3 comments:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Sriram Roy जी !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर प्रस्तुति।
साझा करने के लिए धन्यवाद।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...