Wednesday, May 29, 2024

मुक्तक

कभी जो फूल थी मेरी , क़लम वो शर बना बैठा ।।

जो मुझमें सोई थी सूई , जगा ख़ंजर बना बैठा ।।

न आती है हॅंसी लब को , न रोना ऑंख को आए ,

तुम्हारा बेवफ़ा होना , मुझे पत्थर बना बैठा ।।

-डाॅ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...