कभी जो फूल थी मेरी , क़लम वो शर बना बैठा ।।
जो मुझमें सोई थी सूई , जगा ख़ंजर बना बैठा ।।
न आती है हॅंसी लब को , न रोना ऑंख को आए ,
तुम्हारा बेवफ़ा होना , मुझे पत्थर बना बैठा ।।
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
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