Sunday, May 19, 2024

मुक्तक

ज्यों ही हम ऊॅंची किसी मीनार से कूदें कि त्यों ,

ये सकल संसार बढ़-बढ़ लोकता है किसलिए ?

रेल की पटरी पे ज्यों ही अपना सिर रखते हैं त्यों ,

डाॅंटकर कोई न कोई टोकता है किसलिए ?

यों गहन दुख , घोर कठिनाई में जीवन आ फॅंसा ।।

जैसे दलदल में कोई हाथी समूचा जा धॅंसा ।।

घर लुटा , कपड़े फटे , रोटी छिनी फिर भी हमें ,

विष चबाने से भला जग रोकता है किसलिए ?

-डाॅ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

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