Saturday, May 25, 2024

मुक्तक

जोड़कर हाथ गिड़गिड़ाने पर , 

सचमुच इसरार पे भी तब उसने ;

अपने गालों तलक को छूने का , 

मुझको मौक़ा दिया था कब उसने ?

मैं न रूठा , न मैं तुनुक बिगड़ा , 

जाने इक रोज़ क्या हुआ लफड़ा ,

आके हौले से मेरे होंठों पर , 

रख दिए थे ख़ुद अपने लब उसने !!

-डाॅ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...