अब समझा वो क्यों रहें , अक्सर बहुत उदास ।।
आए थे हरि भजन को , ओटन लगे कपास ।।
बनके रहे वो उम्र भर , उनकी नज़र में ख़ास ।।
लेकिन दिल में एक लम्हा , वो कर सके न वास ।।
मंदिर-मस्ज़िद आजकल , किसको आते रास ?
अब तो केवल चाहिए , उन्नति और विकास ।।
कैसे उनकी बात पर , करलूॅं मैं विश्वास ?
वो नेता होते न तो , रख भी लेता पास ।।
सच कुछ ऐसे शेर हैं , रहते हैं जो पास ।।
भूख न हो बर्दाश्त तो , वो चर लेते घास ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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