आ गया हूॅं तुझपे मरने ।।
या'नी सच्चा प्यार करने ।।
हाॅं तेरी यादों में पहले ,
ऑंखों से गिरते थे झरने ।।
तू बनाले अपने घर का ,
मुझको नौकर पानी भरने ।।
तब भी करता बातें इल्मी ,
जब गई हो अक़्ल चरने ।।
कुछ न कुछ हर वक़्त उठाने ,
या लगा रहता हूॅं धरने ।।
अब चला हूॅं क़ब्र में मैं ,
पाॅंव लटकाकर सुधरने ।।
सब सही है पर लगी क्यों ,
ज़िन्दगी अब कुछ अखरने ?
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति
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