Saturday, May 4, 2024

ग़ज़ल

 

आ गया हूॅं तुझपे मरने ।।

या'नी सच्चा प्यार करने ।।

हाॅं तेरी यादों में पहले ,

ऑंखों से गिरते थे झरने ।।

तू बनाले अपने घर का ,

मुझको नौकर पानी भरने ।।

तब भी करता बातें इल्मी ,

जब गई हो अक़्ल चरने ।।

कुछ न कुछ हर वक़्त उठाने ,

या लगा रहता हूॅं धरने ।।

अब चला हूॅं क़ब्र में मैं ,

पाॅंव लटकाकर सुधरने ।।

सब सही है पर लगी क्यों ,

ज़िन्दगी अब कुछ अखरने ?

-डाॅ. हीरालाल प्रजापति 


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