मत लेकर आ गुटखा या तंबाकू मुझको ।।
गर ला तो दो मूॅंगफली या काजू मुझको ।।
जब से मुर्गा-मछली का शौक़ीन हुआ सच ,
तब से अक्सर मिलता खाने कद्दू मुझको !!
ख़ुश मैं भी हो सकता हूॅं पर शर्त यही है ,
जो चाहूं मैं ठीक वही ला दे तू मुझको ।।
दुश्मन के मिटने पर देखा सब होते ख़ुश ,
जाने क्यों आ जाते थोड़े ऑंसू मुझको ?
वो इक भूखा-प्यासा शेर था जो दिखने में ,
लगता था खाकर सोया इक आहू मुझको ।।
माना मेरा पूरा तन है बालों वाला ,
पर इंसाॅं हूॅं लोग कहें क्यों भालू मुझको ?
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति
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