Monday, April 29, 2024

ग़ज़ल

मत लेकर आ गुटखा या तंबाकू मुझको ।।

गर ला तो दो मूॅंगफली या काजू मुझको ।।

जब से मुर्गा-मछली का शौक़ीन हुआ सच ,

तब से अक्सर मिलता खाने कद्दू मुझको !!

ख़ुश मैं भी हो सकता हूॅं पर शर्त यही है ,

जो चाहूं मैं ठीक वही ला दे तू मुझको ।।

दुश्मन के मिटने पर देखा सब होते ख़ुश ,

जाने क्यों आ जाते थोड़े ऑंसू मुझको ?

वो इक भूखा-प्यासा शेर था जो दिखने में ,

लगता था खाकर सोया इक आहू मुझको ।।

माना मेरा पूरा तन है बालों वाला ,

पर इंसाॅं हूॅं लोग कहें क्यों भालू मुझको ?

-डाॅ. हीरालाल प्रजापति 

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