Sunday, May 5, 2024

ग़ज़ल

 मेरे बिन ज्यों उदासी में वो अब डूबा नहीं रहता ।।

तो मैं भी उसकी फुर्क़त में मरे जैसा नहीं रहता ।।

मेरे कदमों की ऑंखें अपनी मंज़िल पर लगीं रहतीं ,

नहीं है पैर तो क्या मैं कभी बैठा नहीं रहता ।।

हथौड़े मारते रहती है दुनिया मेरे दिल पर ; पर ,

ये जुड़ जाता है फ़ौरन बाख़ुदा टूटा नहीं रहता ।।

ये कहते हैं कि जिसने चोंच दी चुन भी वही देगा ,

जहां कैसा भी हो कोई कभी भूखा नहीं रहता ।।

अगर दिन-रात , सुब्हो शाम ग़म ही ग़म मिलें तो फिर ,

कोई मग़्मूम ज़्यादा दिन तक अफ़्सुर्दा नहीं रहता ।।

न रोज़ी का ठिकाना है न घर बस इसलिए घूमें ,

कोई यों ही तो सारी उम्र बंजारा नहीं रहता ।।

-डॉ. हीरालाल प्रजापति

( फ़ुर्क़त=वियोग / मरे=लाश / बाख़ुदा=ईश्वर की सौगंध / चुन=अन्न कण या भोजन /मग़्मूम=दुखी / अफ़्सुर्दा=उदास / बंजारा=खानाबदोश )


2 comments:

Onkar Singh 'Vivek' said...

वाह,प्रशंसनीय

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत बहुत धन्यवाद 🙏

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