यों वो ज़िंदगी में मेरी कब न था ?
मगर ये भी है वो ही वो सब न था ।।
चलाता था जो हुक़्म मुझ पर मेरा ,
वो मेहबूब था मेरा साहब न था !!
ये क़ब्ज़ा जो उसका मेरे दिल पे है ,
मिला था वो पहली दफ़्आ तब न था ।।
दिल-ओ-जाॅं से करता था मैं प्यार उसे ,
था सब कुछ वो मेरा मगर रब न था ।।
अगर चाहता चाह लेता उसे ,
बदन इतना भी उसका बेढब न था ।।
न मतलब रखा उसने मुझसे कभी ,
उसे जब तलक मुझसे मतलब न था ।।
-डाॅ. हीरालाल प्रजापति
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